
पितृ पक्ष 17 सितंबर तक चलेगा। इसमें पितरों का तर्पण किया जाता है। इसे इसे लेकर बहुत सी मान्यताएं, धारणाएं प्रचलित हैं जो कि शुभ व अशुभ से जुड़ी हैं। यह माना जाता है कि इस अवधि में नया कार्य आरंभ नहीं होता है, ना ही कोई शुभ कार्य किया जाता है। क्रय विक्रय, खरीदारी, भूमिपूजन, संपत्ति के मामले, विवाह आदि प्रसंग इस दौरान नहीं किया जाना चाहिये। लेकिन आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यह सब सच नहीं है। धर्मशास्त्र तो इन बातों को सिरे से खारिज करते ही हैं, विद्वान गण भी इन्हें असत्य बताते हैं। यहां हम आपको बताने जा रहे हैं कि पितृ पक्ष को लेकर समाज में बरसों से चली आ रहीं मान्यताओं की क्या सत्यता है।
विद्वतजन बताते हैं कि पितरों का दर्जा देव कोटि में आता है। उन्हें विवाह समेत शुभ कार्यों तक में आमंत्रित किया जाता है। पितृ पक्ष उनके स्मरण और श्रद्धापूर्वक श्राद्ध का काल है। ऐसे में होना यह चाहिए कि हम इतनी खरीदारी करें कि हमारी समृद्धि देखकर पितर भी प्रसन्न हों। शास्त्र बताते हैं कि हर साल आश्विन माह के कृष्ण पक्ष में आने वाले पितरों की आराधना-साधना के पुण्य काल श्राद्ध पक्ष में अपने पूर्वजों का आह्वान किया जाता है। श्रद्धापूर्वक उनका श्राद्ध-तर्पण कर स्वागत और स्तुति गान किया जाता है। इससे प्रसन्न हो वे वंश वृद्धि, यश-कीर्तिं, सुख-समृद्धि समेत मंगलमय जीवन का आशीष दे जाते हैं। धर्मशास्त्र के प्रतिकूल मान्यता और परंपरा की आड़ में कई भ्रांतियां शुभ-अशुभ का हवाला देते हुए इस दौरान खरीद-बिक्री के निषेध का हौवा बनाती हैं।