
पटना । बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर महागठबंधन जहां एकजुटता दिखाने का प्रयास कर रहा है, वहीं दूसरी ओर अब असदुद्दीन ओवैसी बिहार की सियासत में बड़ा टेंशन देने वाले हैं। बिहार में असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन (AIMIM) ने मुस्लिम बहुल 50 विधानसभा क्षेत्रों में चुनाव लड़ने का ऐलान करके महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ा दी है। ओवैसी ने बिहार में 40 सीटों की सूची भी जारी कर दी है। बाकी का इंतजार है। ये सभी ऐसे क्षेत्र हैं, जहां करीब 25 फीसद से ज्यादा मुस्लिम आबादी है। कई सीटों पर तो 40 से 69 फीसद तक मुस्लिम मतदाता हैं। ओवैसी के रुख से अब विधानसभा चुनाव में मुस्लिम-यादव समीकरण का संतुलन बिगड़ सकता है, जिससे राजग के घटक दल सुकून महसूस कर रहे हैं।
इसलिए परेशान हो रहा महागठबंधन
ओवैसी की पार्टी की बिहार में अति सक्रियता से महागठबंधन के परेशान होने की वजहें भी हैं। AIMIM ने जिन सीटों को अपनी सूची में शामिल किया है, उनमें फिलहाल आधे से अधिक पर महागठबंधन के घटक दलों का कब्जा है। पिछले चुनाव के मुताबिक कुल 50 सीटों में से 30 पर अभी राजद, कांग्रेस और माले के विधायक हैं। एक तिहाई सीटों पर तो अकेले राजद का कब्जा है, जबकि 11 सीटें कांग्रेस के खाते में हैं।
ओवैसी के निशाने पर इसलिए सभी दल
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस विधायक डॉ. जावेद के सांसद चुन लिए जाने के बाद खाली हुई किशनगंज सीट को उपचुनाव में जीतकर ओवैसी ने अपने इरादे को भी स्पष्ट कर दिया है कि वह चुनावी राजनीति में किसी के साथ मुरव्वत करने के पक्ष में नहीं हैं। बिहार में AIMIM के एक मात्र विधायक कमरुल होदा ने सीमांचल के साथ पूरे बिहार की बदहाली के लिए भाजपा-जदयू के साथ-साथ कांग्रेस-राजद को भी बराबर का जिम्मेदार बताया है। उन्होंने कहा कि बहस 15 साल बनाम 15 साल नहीं, बल्कि आजादी के बाद अबतक के 73 साल को गिना जाना चाहिए। जाहिर है, ओवैसी की पार्टी के निशाने पर वैसे सभी दल हैं, जो अबतक बिहार की सत्ता में रहे हैं। इसके पहले हिदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने ओवैसी की पार्टी से गठबंधन की पहल की थी, लेकिन बात कुछ ज्यादा दूर तक नहीं बढ़ी।